Kanakdhara Stotra Lyrics in Hindi
अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥१॥
जिस तरह भ्रमरी अध-खिले पुष्पों से सजे तमाल के वृक्ष का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो भगवान विष्णु के रोमांच से शोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी जी की कटाक्ष-लीला मेरे लिए मंगल देने वाली हो।
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥२॥
जिस तरह भ्रमरी महान कमल के फूलों पर आती-जाती या मँडराती रहती है, वैसे ही जो मुरारी श्री विष्णु के मुख-कमल की ओर बार-बार प्रेम से जाती और लज्जा से लौट आती है, उस समुद्रकन्या लक्ष्मी की मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन-सम्पत्ति प्रदान करे।
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धमिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥३॥
जो सभी देवों के स्वामी इन्द्र के पद का वैभव-विलास देने में सक्षम है, मुरारि श्रीहरि को भी अधिक-से-अधिक आनन्द देने वाली है तथा जो नील-कमल के आंतरिक भाग की तरह मनोहर प्रतीत होती है, उन लक्ष्मी जी के अध-खुले नेत्रों की दृष्टि क्षण मात्र के लिए मुझ पर भी थोड़ी-सी अवश्य पड़े।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम्।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥४॥
शेषनाग पर शयन करते भगवान श्री हरि की धर्म-पत्नी श्री लक्ष्मी जी का वह नेत्र हमें ऐश्वर्य देने वाला हो, जिसकी पुतली तथा भौं प्रेम के कारण आधे खुले हैं, लेकिन साथ ही निर्निमेष नेत्रों से देखने वाले आनन्दकन्द श्रीमुकुन्द को अपने पास पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥५॥
जो भगवान श्री मधुसूदन के कौस्तुभ-मणि से सुशोभित वक्ष-स्थल में इन्द्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है और उनके भी मन में स्नेह का संचार करने वाली है, उस कमलकुंज में रहने वाली कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥६॥
जैसे बादलों की घटा में बिजली प्रकाशित होती है, उसी तरह जो कैटभ के शत्रु श्री विष्णु श्यामसुन्दर के काली मेघमाला के समान वक्ष पर चमकती हैं, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगु ऋषि के वंश को आनन्दित किया है तथा जो सभी लोकों की माता हैं, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीया छवि मुझे कल्याण प्रदान करे।
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥७॥
समुद्रसुता कमला की वह धीमी, अलस, मंथर तथा आधी बंद दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगल करने वाले भगवान मधुसूदन के हृदय में पहली बार स्थान पाया था, यहाँ मुझपर पड़े।
दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारामस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥८॥
श्री हरि की प्रेयसी लक्ष्मी का नयन रूपी बादल दयारूपी अनुकूल वायु से प्रेरित हो दुष्कर्मरूपी धूप को सदैव के लिए दूर कर मुझ दीन दुःखी चातक पर धनरूपी जलधारा की बारिश करे।
इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्रदृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥९॥
विशिष्ट बुद्धि से युक्त लोग जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दया-दृष्टि से स्वर्ग को सहज ही पा लेते हैं, उन्हीं कमल पर विराजित पद्मा की वह विकसित कमल-गर्भ जैसी चमकती दृष्टि मुझे इच्छित पोषण दे।
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥१०॥
जो चराचरोत्पत्ति की लीला के समय ब्रह्म-शक्ति के रूप में स्थित हैं, पालन-लीला के समय वैष्णवी शक्ति के रूप में विराजित हैं और विनाश-लीला के समय रुद्र-शक्ति के रूप में स्थित हैं, उन तीनों लोकों के एकमात्र गुरु भगवान नारायण की चिरयौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मी जी को नमस्कार है।
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥११॥
हे माँ! शुभ कर्मों का फल देने वाले वेदों के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सागर-रूपा रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में रहने वाली शक्ति-रूपिणी लक्ष्मी को नमस्कार है एवं पुरुषोत्तम-प्रिया पुष्टि को नमस्कार है।
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥१२॥
कमल के समान शरीर वाली कमला को नमस्कार है। क्षीरसिन्धु से उत्पन्न श्रीदेवी को नमस्कार है। चन्द्र देव और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥१३॥
कमल जैसे नयनों वाली माननीया माँ! आपके चरणों में की हुई वंदना सम्पत्ति देने वाली, सम्पूर्ण इंद्रियों को प्रसन्न करने वाली, साम्राज्य देने में सक्षम और सर्व पापों का हरण करने के लिए सदैव उद्यत है। मुझे आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर सदैव मिलता रहे।
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसैस्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥१४॥
जिनके कृपाकटाक्ष के लिए की हुई पूजा भक्त के लिए सभी कामनाओं और सम्पत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि के हृदय की स्वामिनी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ।
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥१५॥
भगवति हरि-प्रिये ! तुम कमल के वन में रहने वाली हो, तुम्हारे हाथों में लीला-कमल शोभायमान है। तुम बहुत उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभित हो। तुम्हारी छवि बहुत मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवि! मेरे ऊपर प्रसन्न हो जाओ।
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्टस्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेषलोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥१६॥
दिग्गजों द्वारा स्वर्ण कलश के मुख से गिराये गये आकाश-गङ्गा के निर्मल एवं चित्ताकर्षक जल से जिनके श्रीअंगों का अभिषेक होता है, सभी लोकों के स्वामी भगवान हरि की गृहिणी और क्षीर-सागर की बेटी उन जगत् जननी लक्ष्मी को मैं प्रातः के समय प्रणाम करता हूँ।
कमले कमलाक्षवल्लभेत्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥१७॥
कमल जैसे नेत्रों वाले केशव की कमनीय कामिनी कमले! मैं दीनहीन लोगों में सबसे आगे हूँ। अतः तुम्हारी कृपा का मैं स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरल तरंगों की तरह कटाक्षों द्वारा मेरी ओर दृष्टिपात करो।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥१८॥
जो व्यक्ति इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन की माता भगवती लक्ष्मी की वंदना करते हैं, वे इस पृथ्वी पर महान गुणवान और बहुत भाग्यवान हैं और विद्वान भी उनके मनोभाव जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।
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Kanakdhara Stotra Lyrics PDF
Kanakdhara Stotra Lyrics in English
Angam hare pulaka bhooshanamasrayanthi
Bhringanga neva mukulabharanam thamalam
Angikrithakhila vibhuthirapanga leela
Mangalyadasthu mama mangala devathaya
Mugdha muhurvidhadhadathi vadhane Murare
Premathrapapranihithani gathagathani
Mala dhrishotmadhukareeva maheth pale ya
Sa ne sriyam dhisathu sagarasambhavaya
Ameelithaksha madhigamya mudha Mukundam
Anandakandamanimeshamananga thanthram
Akekara stiththa kaninika pashma nethram
Bhoothyai bhavenmama bhjangasayananganaya
Bahwanthare madhujitha srithakausthube ya
Haravaleeva nari neela mayi vibhathi
Kamapradha bhagavatho api kadaksha mala
Kalyanamavahathu me kamalalayaya
Kalambudhaalithorasi kaida bhare
Dharaadhare sphurathi yaa thadinganeva
Mathu samastha jagatham mahaneeya murthy
Badrani me dhisathu bhargava nandanaya
Praptham padam pradhamatha khalu yat prabhavath
Mangalyabhaji madhu madhini manamathena
Mayyapadetha mathara meekshanardham
Manthalasam cha makaralaya kanyakaya
Viswamarendra padhavee bramadhana dhaksham
Ananda hethu radhikam madhu vishwoapi
Eshanna sheedhathu mayi kshanameekshanartham
Indhivarodhara sahodharamidhiraya
Ishta visishtamathayopi yaya dhayardhra
Dhrishtya thravishta papadam sulabham labhanthe
Hrishtim prahrushta kamlodhara deepthirishtam
Pushtim krishishta mama pushkravishtaraya
Dhadyaddhayanupavanopi dravinambhudaraam
Asminna kinchina vihanga sisou vishanne
Dhushkaramagarmmapaneeya chiraya dhooram
Narayana pranayinee nayanambhuvaha
Gheerdhevathethi garuda dwaja sundarithi
Sakambhareethi sasi shekara vallebhethi
Srishti sthithi pralaya kelishu samsthitha ya
Thasyai namas thribhvanai ka guros tharunyai
Sruthyai namosthu shubha karma phala prasoothyai
Rathyai namosthu ramaneeya gunarnavayai
Shakthyai namosthu satha pathra nikethanayai
Pushtayi namosthu purushotthama vallabhayai
Namosthu naleekha nibhananai
Namosthu dhugdhogdhadhi janma bhoomayai
Namosthu somamrutha sodharayai
Namosthu narayana vallabhayai
Namosthu hemambhuja peetikayai
Namosthu bhoo mandala nayikayai
Namosthu devathi dhaya prayai
Namosthu Sarngayudha vallabhayai
Namosthu devyai bhrugu nandanayai
Namosthu vishnorurasi sthithayai
Namosthu lakshmyai kamalalayai
Namosthu dhamodhra vallabhayai
Namosthu Kanthyai kamalekshanayai
Namosthu bhoothyai bhuvanaprasoothyai
Namosthu devadhibhir archithayai
Namosthu nandhathmaja vallabhayai
Sampath karaani sakalendriya nandanani
Samrajya dhana vibhavani saroruhakshi
Twad vandanani dhuritha haranodhythani
Mamev matharanisam kalayanthu manye
Yath Kadaksha samupasana vidhi
Sevakasya sakalartha sapadha
Santhanodhi vachananga manasai
Twaam murari hridayeswareem bhaje
Sarasija nilaye saroja hasthe
Dhavalathamamsuka gandha maya shobhe
Bhagavathi hari vallabhe manogne
Tribhuvana bhoothikari praseeda mahye
Dhiggasthibhi kanaka kumbha mukha vasrushta
Sarvahini vimala charu jalaapluthangim
Prathar namami jagathaam janani masesha
Lokadhinatha grahini mamrithabhi puthreem
Kamale Kamalaksha vallabhe twam
Karuna poora tharingithaira pangai
Avalokaya mamakinchananam
Prathamam pathamakrithrimam dhyaya
Sthuvanthi ye sthuthibhirameeranwaham
Thrayeemayim thribhuvanamatharam ramam
Gunadhika guruthara bhagya bhagina
Bhavanthi the bhuvi budha bhavithasayo