काशी विश्वनाथ मंदिर – Shri Kashi Vishwanath Temple



विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में स्थित है। भगवान शिव का यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में गंगा नदी के तट पर स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर को विश्वेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।

Shri Kashi Vishwanath Temple

इस शब्द का अर्थ है ‘ब्रह्मांड का शासक’। यह मंदिर 15.5 मीटर ऊंचा है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की निगरानी में बने तथा केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा नव-निर्मित काशी विश्वनाथ कॉरिडॉर जन-मानस के बीच अत्यधिक सराहनीय कदम बताया जा रहा है।

अतः भाजपा इस कॉरिडॉर निर्माण कार्य की उपलब्धता को यू.पी. चुनाव 2022 प्रचार में काफी प्रमुखता के साथ वोटर्स के बीच रख रही है। वैसे भी वाराणसी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोगी जी का संसदीय क्षेत्र है, इस करण भी काशी विश्वनाथ कॉरिडॉरे प्रॉजेक्ट मोदी जी के दिल के अत्यधिक निकट माना जाता है।

विश्वनाथ मंदिर का निर्माण

वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने वर्ष 1780 में करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में 1000 किलो शुद्ध सोने से इसे बनवाया था।

काशी विश्वनाथ मंदिर के खुलने का समय:

सुबह 2.30 बजे काशी विश्वनाथ मंदिर के कपाट खुलते हैं, पहली आरती सुबह 3 बजे की जाती है। यहां दिन में पांच बार भगवान शिव की आरती होती है और आखिरी आरती 10.30 बजे की जाती है।
काशी विश्वनाथ मंदिर दर्शन/भ्रमण के दौरान पंडा सुनील पांडे(9580866105) जी द्वारा दी गई जानकारियाँ काफ़ी सहायक और ज्ञानवर्धक थीं।

विश्वनाथ मंदिर के बारे में रोचक तथ्य

✽ वाराणसी शहर भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित है ऐसा माना जाता है कि ।
✽ मंदिर का गुंबद सोने का बना है इसी लिये काशी विश्वनाथ मंदिर को स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है।
✽ पवित्र गंगा नदी में स्नान करने और काशी विश्वनाथ मंदिर में जाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
✽ मंदिर के गर्भगृह में एक मंडप और एक शिवलिंग है। इसे एक चौकोर चांदी की वेदी में स्थापित किया गया है।
✽ मंदिर परिसर में कालभैरव, भगवान विष्णु और विरुपाक्ष गौरी के मंदिर भी हैं।
✽ जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था, तब सूर्य की पहली किरण काशी पर पड़ी थी।

इतिहास कहता है इस मंदिर के दर्शन करने आदि शंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद और गोस्वामी तुलसीदास भी आए थे।


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