Shiv Chalisa Lyrics in Hindi from the album Shri Somnath Amritwan, sung by Anuradha Paudwal, lyrics is written by Traditional, music composed by Shekhar Sen.
Hindi Bhakti Song: Shiv Chalisa Lyrics
Album: Shri Somnath Amritwani – Shiv Chalisa
Singer: Anuradha Paudwal
Composer: Shekhar Sen
Lyricist: Traditional
Music Label: T-Series
ॐ नमः शिवाय || ॐ नमः शिवाय || ॐ नमः शिवाय
समस्त ब्रहमांड को उत्पत करने वाले उसे पालने वाले एवं संहार करने वाले भगवान सदा शिव की महिमा तो वेद पूरण भी नहीं कर सकते, केवल भगवान शंकर ही ऐसे हैं जो मानव और दानव दोनों इष्ट देव हैं. भगवान शिव की इतुतियों में श्री शिव चालीसा श्रेष्ट मानी गयी है और कल्याणकारी भी
श्री शिव चालीसा का पाठ करने व सुनने से घर में सुख, शांति, धन, वैभव, भक्ति और प्रेम की वृद्धि होती है. जैसे भगवान शिव किसी एक जाति व धर्म के नहीं बल्कि पुरे मानव समाज के हैं. वैसे ही श्री शिव चालीसा और शिव इतुती का अधिकार पुरे मानव समाज को है.
केवल वेळ पत्र और जल धारा से अति प्रसन्न होने वाले भोले बाबा के चरणों में समस्त शिव भक्तों की तरफ से समर्पित है श्री शिव चालीसा:-
Shiv Chalisa Lyrics in Hindi
||दोहा||
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान |
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ||
जय गिरिजा पति दीन दयाला |
सदा कर्ट सन्तन प्रतिपाला ||
भाल चंद्रमा सोहत नीके |
कानन कुण्डल नागफनी के ||
अंग गौर शिर गंग बहाये |
मुण्डमाल तन छार लगाये ||
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे |
छवि को देख नाग मुनि मोहे ||
मैना मातु की हवे दुलारी |
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ||
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी |
करत सदा शत्रून क्षयकारी ||
नंदी गणेश सोहे तहँ कैसे |
सागर मध्य कमल हैं जैसे ||
कार्तिक श्याम और गणराऊ |
या छवि को कहि जात न काऊ ||
देवन जबहीं जाय पुकारा |
तब ही दुःख प्रभु आप निवारा ||
किया उपद्रव तारक भारी |
देवन सब मिली तुम्हीं जुहारी ||
तुरत षडानन आप पठायउ |
लावनिमेष महँ मारी गिरायउ ||
आप जलंधर असुर संहारा |
सुयश तुम्हार विदित संसारा ||
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई |
सबहीं कृपा कर लीन बचाई ||
किया तपहिं भागीरथ भारी |
पूरब प्रतीक्षा तासु पुरारी ||
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहिं |
सेवक स्तुति करत सदाहीं ||
वेद माहि महिमा तुम गाई |
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ||
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला |
जरत सुरासुर भए विहाला ||
कीन्ही दया तहँ करी सहाई |
नीलकंठ तब नाम कहाई ||
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा |
जीत के लंक विभीषन दीन्हा ||
सहस कमल में हो रहे धारी |
कीन्ह परीक्षा तबहीं पुरारी ||
एक कमल प्रभु राखेउ जोई |
कमल नयन पूजन चहंसोई ||
कठिन भक्ति देखि प्रभु शंकर |
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ||
जय जय जय अनन्त अविनाशी |
करत कृपा सब के धटवासी ||
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै |
भ्रमत रहौं मोहि आन उबारो ||
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो |
येहि अवसर मोहि आन उबारो ||
मात-पिता भ्राता सब होई |
संकट में पूछत नहिं कोई ||
स्वामी एक है आस तुम्हारी |
आय हरहु मम संकट भारी ||
धन निर्धन को देत सदा होई |
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ||
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी |
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ||
शंकर हो संकट के नाशन |
मंगल कारण विध्न विनाशन ||
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं |
शारद शीश नवावैं ||
नमो नमो जय नमः शिवाय |
सुर ब्रम्हादिक पार न पाय ||
जो यह पाठ करे मन लाई |
ता पर होत है शम्भु सहाई ||
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी |
पाठ करे सो पावन हारी ||
पुत्र होन कर इच्छा जोई |
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ||
पंडित त्रयोदशी को लावे |
ध्यान पूर्वक होम करावे ||
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा |
ताके तन नहीं रहै कलेशा ||
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे |
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ||
जन्म जन्म के पाप नसावे |
अंत धाम शिवपुर में पावे ||
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी |
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ||
|| दोहा ||
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा |
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ||
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान |
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ||
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