माँ विपदतारिणी पूजा – Bipadtarini Puja



विपदतारिणी पूजा देवी शक्ति को समर्पित एक शुभ उपासना है जो देवी काली की भी अभिव्यक्ति करता है। विपद तारिणी पूजा, रथ यात्रा के बाद और बहुदा रथ के यात्रा से पहले हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की मंगलबार और शनिबार के दिन मनाया जाता है।

Bipadtarini Puja

यह पूजा मुख्यतः बंगाल, ओडिशा, असम के क्षैत्र में मनाई जाती है। बंगाली समाज की महिलाओं द्वारा विशेष तौर पर माँ विपदतारिणी की पूजा श्रद्धापूर्वक प्रत्येक बर्ष की जाती है।

विपदतारिणी व्रत पूजा कैसे की जाती है

  • ब्रत करने के एक दिन पहले, जो महिलाएं व्रत रखना चाहती हैं उन्हें केवल शाकाहारी भोजन का सेवन ही करना चाहिए।
  • माता के व्रत के दिनों, प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूरे घर की अच्छे से साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें।
  • इसके साथ ही माता विपद तारिणी जी की पूजा करें।
  • नैवेद्य के रूप में देवी को 13 प्रकार के फल, फूल, मिष्ठान का भोग लगाया जाना चाहिए। देवी की पूजा गुड़हल के फूल से की जाती है, जो सौभाग्य को देने वाला है।
  • व्रत करने वाली महिलाएं अपने बाएं हाथ में चौदह गांठों के साथ लाल रंग का पवित्र धागा पहनती हैं। यदि पुरुष व्रत करते हैं, तो उन्हें यह धागा दाहिने हाथ में पहनना चाहिए।
  • इस दौरान मंदिरों में पुजारी द्वारा माँ विपदतारिणी की व्रत कथा भी सुनाई जाती है जिसे व्रती को श्रद्धापूर्वक सुनना चाहिए।

प्रचलित मान्यता यह है कि जो लोग व्रत का विधि पूर्वक पालन करते हैं उन्हें देवी विपदतारिणी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वे परिवार को सभी प्रकार के संकटों से बचाने में सक्षम होजाते हैं।

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