प्रेम से बोलिए श्री लक्ष्मी नारायण भगवान की जय, भक्त जनों एकादशी का व्रत हिन्दू धर्म में बहुत महत्व रखता है, ऐसा माना जाता है की श्री विष्णु भगवान को एकादशी का व्रत अति प्रिय है, जो भी श्रद्धालु एकादशी व्रत का पालन करते हैं वे भगवान विष्णु के कृपा के भागी होते हैं.
अजा एकादशी की पौराणिक कथा के अनुसार युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, हे माधव अजा एकादशी क्या है और इसे क्यों धारण किया जाता है, इसे धारण करने से क्या लाभ होगा. महाराज युधिष्ठिर की बातें सुनकर भगवान श्रीकृष्ण बोले,
राजन् ! एकचित होकर सुनो। भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘अजा’ है, वह सब पापोंका नाश करनेवाली बतायी गयी है। जो भगवान् हृषीकेशका पूजन करके इसका व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। पूर्वकालमें हरिश्चन्द्र नामक एक विख्यात चक्रवर्ती राजा हो गये है, जो समस्त भूमण्डलके स्वामी और सत्यप्रतिज्ञ थे।
एक समय किसी कर्मका फलभोग प्राप्त होनेपर उन्हें राज्यसे भ्रष्ट होना पड़ा। राजाने अपनी पत्नी और पुत्र को बेचा। फिर अपने को भी बेच दिया। पुण्यात्मा होते हुए भी उन्हें चाण्डाल की दासता करनी पड़ी। वे मुदांका कफन लिया करते थे। इतनेपर भी नृपश्रेष्ठ हरिश्चन्द्र सत्यसे विचलित नहीं हुए।
इस प्रकार चाण्डाल की दासता करते उनके अनेक वर्ष व्यतीत हो गये। इससे राजा को बड़ी चिन्ता हुई। वे अत्यन्त दुःखी होकर सोचने लगे – ‘क्या करूं? कहां जाऊं? कैसे मेरा उद्धार होगा?’ इस प्रकार चिन्ता करते-करते वे शोक के समुद्रमें डूब गये। राजा को आतुर जानकर कोई मुनि हैं उनके पास आये, वे महर्षि गौतम थे।
श्रेष्ठ बाहह्मण को आया देख गुपत्रेहने उनके चरणों में प्रणाम किया और दोनों हाथ जोड़ गौतम के सामने खड़े होकर अपना सारा दुःसमय समाचार कह सुनाया। राजा की बात सुनकर गौतम ने कहा- ‘राजन् ! भादों के कृष्ण पक्ष में अत्यन्त कल्याणमयी ‘अजा’ नाम की एकादशी आ रही है, जो पुण्य प्रदान करने वाली है। इसका व्रत करो। इससे पाप का अन्त होगा। तुम्हारे भाग्य से आज के सातवें दिन एकादशी है। उस दिन उपवास करके रात में जागरण करना ।’
ऐसा कहकर महर्षि गौतम अन्तर्धान हो गये। मुनि की बात सुनकर राजा हरिश्चन्द्रने उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया। उस व्रतके प्रभावसे राजा सारे दुःखों से पार हो गये। उन्हें पत्नीका सत्रिधान और पुत्रका जीवन मिल गया। आकाशमें दुन्दुभियां बज उठीं।
देव लोक से फूलों की वर्षा होने लगी। एकादशी के प्रभाव से राजा ने अकण्टक राज्य प्राप्त किया और अन्तमें वे पुरजन तथा परिजनोंके साथ स्वर्गलोकको प्राप्त हो गये। राजा युधिष्ठिर ! जो मनुष्य ऐसा व्रत करते हैं, वे सब पापोंसे मुक्त हो स्वर्ग लोक में जाते हैं। इसके पढ़ने और सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
Shri Vishnu Ji Ke Bhajan
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- शुक्लाम्बरधरं विष्णुं Shuklambaradharam Vishnum
- आरती विष्णु जी की Aarti Vishnu Ji Ki
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- श्री हरि स्तोत्रम् Shree Hari Stotram
- ॐ नमो: भगवते वासुदेवाय नमः Om Namo Bhagavate Vasudevaya Namah
- हरि नाम नहीं तो जीना क्या Hari Nam Nahi To Jeena Kya
- रट ले हरि का नाम रे प्राणी Rat Le Hari Ka Naam Re Prani
- हे विष्णु विधाता Hey Vishnu Vidhata