कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा Krishna Janmashtami Vrat Katha



हरे कृष्णा, प्रिय भक्त जनों आप सबको कृष्ण जन्माष्टमी की ढेर सारी शुभकामनायें, कान्हा जी आप और आपके परिवार जनों की रक्षा करें. कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर सभी सुखों को प्रदान करने वाली, सभी दुखों का नाश करने वाली पौराणिक कथा सुनेंगे, चलिए शुरू करते हैं. भागवत पुराण के अनुसार, द्वापर युग में मथुरा नगरी पर कंस नाम का एक अत्याचारी राजा शासन करता था. उसने अपने पिता राजा उग्रसेन को गद्दी से हटाकर जेल में बंद कर दिया और स्वयं राजा बन गया. मथुरा की प्रजा उसके शासन में होने वाले अत्याचारों से बहुत दुखी थी. कंस अपनी बहन देवकी से बहुत प्यार करता था. उसने देवकी का विवाह अपने मित्र वासुदेव के साथ कराया. जब कंश देवकी और वासुदेव को उनके राज्य लेकर जा रहा था तभी एक आकाशवाणी हुई – ‘हे कंस! जिस बहन को तू उसके ससुराल छोड़ने जा रहा है, उसके गर्भ से पैदा होने वाली आठवीं संतान तेरी वध का कारण बनेगी.’आकाशवाणी सुनकर कंस क्रोधित हो उठा और वासुदेव को वध करने के लिए बढ़ा.

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तब देवकी ने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए अपने भाई कंश से कहा कि वह उसके पति को न वध करें, उनकी जो भी संतान जन्म लेगी, उनको वो कंस को सौंप देगी. कंस ने बहन की बात मान लीं और दोनों को कारागार में बंद कर दिया. कारागार में देवकी ने एक-एक करके सात बच्चों को जन्म दिया, लेकिन कंस ने उन सभी बच्चों को जन्म लेते ही वध कर डाला. हालांकि सातवीं संतान के रूप में जन्में शेष के अवतार बलराम को योगमाया ने संकर्षित कर माता रोहिणी के गर्भ में पहुंचा दिया था. इसलिए ही बलराम जी को संकर्षण भी कहा जाता है. आकाशवाणी के अनुसार, माता देवकी की आठवीं संतान के रूप में स्वयं भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया. ठीक उसी समय माता यशोदा ने भी एक पुत्री को जन्म दिया. इस बीच कारागार में अचानक प्रकाश हुआ और भगवान श्री हरि विष्णु प्रकट हुए. उन्होंने वासुदेव से कहा कि आप इस बालक को अपने मित्र नंद जी के यहां छोड़ आइए और वहां से उनकी कन्या को यहां ले आइए. तब भगवान विष्णु के आदेश से वासुदेव जी भगवान कृष्ण को सूप में रखा और उस सूप को अपने सिर पर उठाकर नंद जी के घर की ओर चल पड़े. उस समय भगवान विष्णु की माया से सभी पहरेदार सो गए और कारागार के सभी दरवाजे अपने आप खुल गए. यमुना नदी उस समय वर्षा के कारण गहरे उफान पर थी पर उस समय यमुना जी ने भी शांत होकर वासुदेव जी को जाने का मार्ग दे दिया. वासुदेव बालक के रूप में भगवान कृष्ण को लेकर नंद जी के यहां सकुशल पहुंच गए और वहां बालक कृष्ण को यशोदा माता के पास लिटाकर, उनकी नवजात कन्या को अपने साथ लेकर वापस आ गए. जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म की सूचना मिली तब वह तत्काल कारागार में कन्या की वध करने के लिए आया और उस कन्या को देवकी माता से छीनकर पृथ्वी पर पटकने का प्रयास करने लगा, लेकिन वह कन्या कंस के हाथों से छूटकर आसमान की ओर जाने लगी. तब उस कन्या ने कहा- ‘हे मूर्ख कंस! तूझे वध करने वाला जन्म ले चुका है और वह वृंदावन पहुंच गया है. अब तुझे जल्द ही तेरे पापों का दंड मिलेगा.’ माता यशोदा की वह कन्या कोई और नहीं, स्वयं योग माया थीं. इस तरह से भगवान श्री कृष्ण ने दुराचारी कंस का वध किया और सभी देवी देवताओं ने आसमान से पुष्प की वर्षा की. ये थी कृष्ण जन्माष्टमी की पौराणिक कथा. हरे कृष्णा.

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