वेदसार शिवसत्व: एक प्रसिद्द हिन्दू धार्मिक स्तोत्र है जो भगवन शिव की महिमा का वर्णन करता है. इस स्तोत्र की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी. इस स्तोत्र में भगवान शिव के विभिन्न रूपों और उनके दिव्य गुणों का वर्णन किया गया है. वेदसार शिवसत्व: में भगवान शिव की उपासना के महत्त्व को भी बताया गया है. यह स्तोत्र भक्तों को आध्यात्मिक शान्ति और मोक्ष प्राप्ति की दिशा में मार्गदर्शन करता है. वेदसार शिवसत्व: का पाठ करने से माना जाता है की भक्तों के सभी पाप घुल जाते हैं और उन्हें भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है. यह स्तोत्र शिव रात्रि और अन्य पूजा के अवसरों पर विशेष रूप से पढ़ा जाता है.
Vedsar Shiv Stav Stotram Lyrics
वेदसार शिव स्तवः
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम्॥१॥
जो सम्पूर्ण प्राणियोंके रक्षक हैं, पापका ध्वंस करनेवाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराजका चर्म पहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूटमें श्रीगंगाजी खेल रही हैं, उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजीका मैं स्मरण करता हूँ।
महेशं सुरेशं सुरारार्तिनाशं
विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्॥२॥
चन्द्र, सूर्य और अग्नि – तीनों जिनके नेत्र हैं, उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देवदुःखदलन, विभु, विश्वनाथ, विभूतिभूषण, नित्यानन्दस्वरूप, पंचमुख भगवान् महादेवकी मैं स्तुति करता हूँ।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
गवेन्द्राधिरूढं गणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्॥३॥
जो कैलासनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ हैं, बैलपर चढ़े हुए हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसारके आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीरमें भस्म लगाये हुए हैं और श्रीपार्वतीजी जिनकी अर्द्धांगिनी हैं, उन पंचमुख महादेवजीको मैं भजता हूँ।
शिवाकान्त शम्भो शशांकार्धमौले
महेशान शूलिन् जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद-व्यापको विश्वरूप
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप॥४॥
हे पार्वतीवल्लभ महादेव! हे चन्द्रशेखर! हे महेश्वर! हे त्रिशूलिन्! हे जटाजूटधारिन्! हे विश्वरूप! एकमात्र आप ही जगत्में व्यापक हैं। हे पूर्णरूप प्रभो! प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं
निरीहं निराकारम-ओमकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्॥५॥
जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत्के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं और प्रणवद्वारा जाननेयोग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्वकी उत्पत्ति और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभुको मैं भजता हूँ।
न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायु-
र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न ग्रीष्मो न शीतं न देशो न वेषो
न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे॥६॥
जो न पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश हैं; न तन्द्रा हैं, न निद्रा हैं, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं तथा जिनका न कोई देश है, न वेष है, उन मूर्तिहीन त्रिमूर्तिकी मैं स्तुति करता हूँ।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम्॥७॥
जो अजन्मा हैं, नित्य हैं, कारणके भी कारण हैं, कल्याणस्वरूप हैं, एक हैं, प्रकाशकोंके भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रयसे विलक्षण हैं, अज्ञानसे परे हैं, अनादि और अनन्त हैं, उन परमपावन अद्वैतस्वरूपको मैं प्रणाम करता हूँ ।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य॥८॥
हे विश्वमूर्ते! हे विभो! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे चिदानन्दमूर्ते! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे तप तथा योगसे प्राप्तव्य प्रभो! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे वेदवेद्य भगवन्! आपको नमस्कार है, नमस्कार है।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ
महादेव शम्भो महेश त्रिनेत्र।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः॥९॥
हे प्रभो! हे त्रिशूलपाणे! हे विभो! हे विश्वनाथ! हे महादेव! हे शम्भो! हे महेश्वर! हे त्रिनेत्र! हे पार्वतीप्राणवल्लभ! हे शान्त! हे कामारे! हे त्रिपुरारे! तुम्हारे अतिरिक्त न कोई श्रेष्ठ है, न माननीय है और न गणनीय है।
शम्भो महेश करुणामय शूलपाणे
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेकस्त्वं
हंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि॥१०॥
हे शम्भो! हे महेश्वर! हे करुणामय! हे त्रिशूलिन्! हे गौरीपते! पशुपते! हे पशुबन्धमोचन! हे काशीश्वर! एक तुम्हीं करुणावश इस जगत्की उत्पत्ति, पालन और संहार करते हो; प्रभो! तुम ही इसके एकमात्र स्वामी हो।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मकं हर चराचरविश्वरूपिन्॥११॥
हे देव! हे शंकर! हे कन्दर्पदलन! हे शिव! हे विश्वनाथ! हे ईश्वर! हे हर! हे चराचरजगद्रूप प्रभो! यह लिंगस्वरूप समस्त जगत् तुम्हींसे उत्पन्न होता है, तुम्हींमें स्थित रहता है और तुम्हींमें लय हो जाता है।
इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतो वेदसारशिवस्तवः सम्पूर्णम्।
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Vedsar Shiv Stav Stotram Lyrics in English
Mahesham Suresham Suraarartinasham
Vibhum Vishvanatham Vibhootyangabhusham
Viroopakshamindvarkavahnitrinetram
Sadanandamide Prabhum Panchavaktram
Gireesham Ganesham Gale Neelavarnam
Gavendradhiroodham Ganateetaroopam
Bhavam Bhaswaram Bhasmana Bhooshitangam
Bhavanikalatram Bhaje Panchavaktram
Shivaakanta Shambho Shashankardhamoule
Maheshan Shoolin Jatajootadharin
Tvameko Jagad-vyapako Vishwaroopa
Praseeda Praseeda Prabho Poornaroopa
Paratmanamekam Jagadbeejamadyam
Niriham Nirakaram-Omkaravedyam
Yato Jayate Palyate Yena Vishwam
Tamisham Bhaje Liyate Yatra Vishwam
Na Bhoomir Na Chapo Na Vahnir Na Vayu-
Rna Chakashamaste Na Tandra Na Nidra
Na Greeshmo Na Sheetam Na Desho Na Vesho
Na Yasyasti Moortistrimoortim Tamide
Ajam Shashvatam Karanam Karananam
Shivam Kevalam Bhasakam Bhasakanam
Turiyam Tamahparamadyantahinam
Prapadye Param Pavamam Dwaitahinam
Namaste Namaste Vibho Vishwamoorte
Namaste Namaste Chidanandamoorte
Namaste Namaste Tapoyogagamya
Namaste Namaste Shruti Gyanagamya
Prabho Shoolapaane Vibho Vishvanatha
Mahadeva Shambho Mahesha Trinetra
Shivaakanta Shanta Smarare Purare
Tvadanyo Varenyo Na Manyo Na Ganyah
Shambho Mahesh Karunamaya Shoolapaane
Gauripate Pashupate Pashupashanashin
Kashi Pate Karunaya Jagadetadekas Tvam
Hansi Pasi Vidadhasi Maheshwarosi
Tvatto Jagadbhavati Deva Bhava Smarare
Tvayyeva Tishthati Jaganmruda Vishvanatha
Tvayyeva Gacchati Layam Jagadetadeesha
Lingatmakam Hara Characharavishwaroopin
Iti Shrimachchhankaracharyakrito Vedasarashivastavah Sampurnam